Mrityunjay Vishnu Stotra is a divine praise of Lord Vishnu to destroy the shackles of death and insult. The Stotra is derived from the Narasimha Puran.
This stotra is dedicated to Mrityunjaya Mahavishnu. Markandeya conquered death by listening to it. A devotee who recites it consistently and fervently is granted longevity, is cured of illness, and is freed from death.
This infallible Mrityunjay Stotra, which calms death, was preached to Markandeyji by Lord Vishnu directly for his benefit. The seeker who recites regularly, the virtuous man who keeps Lord Achyuta in the forefront of his thoughts, does not pass away too soon.
Regretfully, if a Jataka's horoscope includes both early death and death-like pain, one should recite this stotra at least 5100 times on their own or with the help of a trustworthy priest.
It is also necessary to do the rosary's Havan and Tarpan. The Guru's grace should be used to gather information regarding planetary peace and other unique ceremonies that are organized based on the situation.
यह स्तोत्र मृत्युंजय महाविष्णु को समर्पित है। मार्कण्डेय ने इसे श्रवण कर मृत्यु पर विजय पाई। जो भक्त इसे नियमित और श्रद्धापूर्वक पढ़ता है, उसकी मृत्यु नहीं आती, रोग दूर होते हैं और दीर्घायु प्राप्त होती है।
स्वयं भगवान् विष्णु ने ही मार्कण्डेयजी के हितार्थ हेतु उन्हें मृत्यु को शान्त करने वाले इस अमोघ मृत्युंजयस्तोत्र का उपदेश दिया था। जो मानव नित्य नियमपूर्णक त्रिकालसंध्या इस परम पवित्र स्तोत्र का पाठ करता है, भगवान् अच्युत में चित्त लगाने वाले उस उत्तम पुरुष का अकालमरण नहीं होता।
दुर्भाग्यवश जिस जातक की कुण्डली में अकालमृत्यु अथवा मृत्युतुल्यकष्ट का योग हो तो उस दोष की शान्ति हेतु कम से कम 5100 पाठ नियमपूर्वक इस स्तोत्र के स्वयं करने चाहिये अथवा सदाचारी एवं विश्वसनीय गुरु से करवाने चाहिये। स्तोत्र पाठ पूर्ण होने पर मृत्युविनाशक शुद्ध सामग्रियों से 31 माला का हवन एवं तर्पण भी करवाना चाहिये।
माला का हवन एवं तर्पण भी करवाना चाहिये। परिस्थितिनुसार ग्रह शान्ति एवं अन्य विशेष कर्मों का आयोजन भी किया जाता है, जिसकी जानकारी गुरुकृपा से प्राप्त करनी चाहिये।
मृत्युञ्जय महाविष्णु स्तोत्र”!!
ॐ ह्रौं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ नमो भगवते मृत्युंजयाय महाविष्णवे त्र्यम्बकाय अमृतकल्पविग्रहाय श्रीसुदर्शनाय नमः॥
ॐ नमो भगवते मृत्युंजयाय महाविष्णवे अमृतेश्वराय त्रिलोकनाथाय सुदर्शनाय कालान्तकाय पद्मनाभाय श्रीधराय अमृतकलशहस्ताय नृसिंहाय गोविन्दाय मृत्युमोचनाय नमो नमः॥
ॐ नमो भगवते मृत्युञ्जयाय परमात्मने ।
ॐ नमो भगवते मृत्युंजय महाविष्णवे अमृतसंजीवनाय विराट् पुरुषाय सर्ववयापकाय ॐ।
(अर्थ:हे मृत्युञ्जय महाविष्णु! आपको नमन। आप अमृतदायि, सर्वव्यापी, विराट पुरुष हैं।)
Mrityunjay Vishnu Stotra Meaning
!!“मृत्युञ्जय महाविष्णु स्तोत्र”!! (हिन्दी अर्थ सहित)
ततो विष्ण्वर्पितमना मारकण्डेयो महामतिः ।
तुष्टाव प्रणतो भूत्वा देवदेव जनार्दनम्
विष्णुनैवोपदिष्टं तु स्तोत्रं कर्णे महामनाः ।
सम्भावितेन मनसा तेन तुष्टाव माधवम् ॥
tato vishnvarpitamanaa maarakand'eyo mahaamatih' .
tusht'aava pranato bhootvaa devadeva janaardanam
vishnunaivopadisht'am' tu stotram' karne mahaamanaah' .
sambhaavitena manasaa tena tusht'aava maadhavam ..
अर्थ:मार्कण्डेय महामति अपने मन को विष्णु को समर्पित कर प्रणाम करते हैं। वे ध्यानपूर्वक और श्रद्धा से इस स्तोत्र का पाठ करते हैं।
मार्कण्डेय ने महामनः होकर देवदेव नारायण को प्रणाम किया और उनके द्वारा निर्देशित यह स्तोत्र श्रवण किया।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । नारायणं सहस्राक्षं पद्मनाभं पुरातनम्।
प्रणतोऽस्मि हृषीकेशं किं मे मृत्युः करिष्यति ॥
om namo bhagavate vaasudevaaya .
naaraayanam' sahasraaksham' padmanaabham' puraatanam .
pranato'smi hri'sheekesham' kim' me mri'tyuh' karishyati ..
अर्थ:हे सहस्राक्ष नारायण, पद्मनाभ और प्राचीन! मैं हृषीकेश के चरणों में समर्पित हूँ। अब मेरे लिए मृत्यु कैसे संभव होगी?
गोविन्दं पुण्डरीकाक्षमनन्तमजमव्ययम्।
केशवं च प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ॥
govindam' pund'areekaakshamanantamajamavyayam .
keshavam' cha prapanno'smi kim' me mri'tyuh' karishyati ..
अर्थ: हे गोविन्द, पुण्डरीकाक्ष, अनन्त, अजन्मा और अविनाशी! मैं आपके प्रति समर्पित हूँ। अब मेरे लिए मृत्यु कैसे संभव होगी?
वासुदेवं जगद्योनिं भानुवर्णमतीन्द्रियम्।
दामोदरं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ॥
vaasudevam' jagadyonim' bhaanuvarnamateendriyam .
daamodaram' prapanno'smi kim' me mri'tyuh' karishyati ..
अर्थ:हे वासुदेव, जगतजनक और सूर्य-समान तेजस्वी! मैं आपके वचन और संरक्षण में हूँ। मेरे लिए मृत्यु अब कैसे हो सकती है?
शङ्खचक्रधरं देवं छन्नरूपिणमव्ययम्।
अधोक्षजं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ॥
shankhachakradharam' devam' chhannaroopinamavyayam .
adhokshajam' prapanno'smi kim' me mri'tyuh' karishyati ..
अर्थ: हे शंख-चक्रधारी, छन्नरूप और अविनाशी देव! मैं आपकी शरण में हूँ। अब मेरे लिए मृत्यु का कोई प्रभाव नहीं।
वाराहं वामनं विष्णुं नरसिंहं जनार्दनम्।
माधवं च प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ॥
vaaraaham' vaamanam' vishnum' narasim'ham' janaardanam .
maadhavam' cha prapanno'smi kim' me mri'tyuh' karishyati ..
अर्थ: हे वाराह, वामन, विष्णु, नरसिंह और माधव! मैं आपकी शरण में हूँ। अब मृत्यु कैसे मुझ तक पहुँच सकती है?
पुरुषं पुष्करं पुण्यं क्षेमबीजं जगत्पतिम्।
लोकनाथं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ॥
purusham' pushkaram' punyam' kshemabeejam' jagatpatim .
lokanaatham' prapanno'smi kim' me mri'tyuh' karishyati ..
अर्थ: हे जगत के पालक, पुण्य, पुष्कर और क्षेमबीज पुरुष! मैं आपकी शरण में हूँ। अब मेरे लिए मृत्यु की कोई शक्ति नहीं।
भूतात्मानं महात्मानं जगद्योनिमयोनिजम्।
विश्वरूपं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ॥
bhootaatmaanam' mahaatmaanam' jagadyonimayonijam .
vishvaroopam' prapanno'smi kim' me mri'tyuh' karishyati ..
अर्थ: हे भूतात्मा, महात्मा और जगतजनक! मैं आपके शरणागत हूँ। अब मेरे लिए मृत्यु संभव नहीं।
सहस्रशिरसं देवं व्यक्ताव्यक्तं सनातनम्।
महायोगं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ॥
sahasrashirasam' devam' vyaktaavyaktam' sanaatanam .
mahaayogam' prapanno'smi kim' me mri'tyuh' karishyati ..
अर्थ: हे सहस्रशिर, व्यक्त और अव्यक्त, सनातन और महायोग के धारी! मैं आपकी शरण में हूँ। अब मेरी मृत्यु नहीं हो सकती।
इत्युदीरितमाकर्ण्य स्तोत्रं तस्य महात्मनः।
अपयातस्ततो मृत्युर्विष्णुदूतैश्च पीडितः ॥
ityudeeritamaakarnya stotram' tasya mahaatmanah' .
apayaatastato mri'tyurvishnudootaishcha peed'itah' .
अर्थ:महात्मा मार्कण्डेय ने यह स्तोत्र श्रवण किया। उसके बाद मृत्यु भी विष्णु के दूतों द्वारा पीड़ित होकर भाग गई।
इति तेन जितो मृत्युर्मार्कण्डेयेन धीमता।
प्रसन्ने पुण्डरीकाक्षे नृसिंहे नास्ति दुर्लभम् ॥
iti tena jito mri'tyurmaarkand'eyena dheemataa .
prasanne pund'areekaakshe nri'sim'he naasti durlabham .
अर्थ:इस प्रकार, बुद्धिमान मार्कण्डेय ने मृत्यु को विजय किया। जब पुण्डरीकाक्ष नारसिंह प्रसन्न होते हैं, तब मृत्यु नितांत असंभव हो जाती है।
मृत्युञ्जयमिदं पुण्यं मृत्युप्रशमनं शुभम्।
मार्कण्डेयहितार्थाय स्वयं विष्णुरुवाच ह ॥
mri'tyunjayamidam' punyam' mri'tyuprashamanam' shubham .
maarkand'eyahitaarthaaya svayam' vishnuruvaacha ha .
अर्थ: यह मृत्युञ्जय महाविष्णु स्तोत्र पुण्य और शुभ है। यह मृत्यु को शांत करने वाला है। इसे मार्कण्डेय के कल्याण हेतु स्वयं विष्णु ने कहा।
य इदं पठते भक्त्या त्रिकालं नियतः शुचिः।
नाकाले तस्य मृत्युः स्यान्नरस्याच्युतचेतसः ॥
ya idam' pat'hate bhaktyaa trikaalam' niyatah' shuchih' .
naakaale tasya mri'tyuh' syaannarasyaachyutachetasah' ..
अर्थ: जो भक्तिपूर्वक, शुद्ध हृदय से इस स्तोत्र का त्रिकाल (सवेरा, दोपहर, रात) पाठ करता है, उसकी मृत्यु नहीं होगी।
हृत्पद्ममध्ये पुरुषं पुराणं नारायणं शाश्वतमादिदेवम्।
सञ्चिन्त्य सूर्यादपि राजमानं मृत्युं स योगी जितवांस्तदैव ॥
hri'tpadmamadhye purusham' puraanam' naaraayanam' shaashvatamaadidevam .
sanchintya sooryaadapi raajamaanam' mri'tyum' sa yogee jitavaam'stadaiva .
अर्थ: जो योगी हृदय के पद्म में पुराण नारायण का ध्यान करता है और उसे स्मरण करता है, वह सूर्य से भी अधिक दीर्घायु प्राप्त करता है और मृत्यु पर विजय पाता है।
इति श्रीनरसिंहपुराणे मार्कण्डेयमृत्युञ्जयो नाम सप्तमोऽध्यायः ॥ ७॥